थोड़ी बातें मेरे बारे में...!

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रांची, झारखण्ड, India
पुराना नाम: आलोक आदित्य, लेखक, पत्रकार, योग प्रशिक्षक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, सम्पादक: जागृति संवाद (हिन्दी, द्वैमासिक). 'सौंग ऑफ दी वूड्स' नामक पुस्तक दिसंबर १९९३ में रांची, इंडिया से प्रकाशित. मीडिया की पढ़ाई स्वीडेन (यूरोप) से. 'सौंग ऑफ दी वूड्स' पुस्तक में झारखण्ड के आदिवासियों की जीवन-शैली, कला, साहित्य, संस्कृति एवं परम्पराओं की चर्चा है. यह पुस्तक भारत एवं विश्व के अन्य देशों के समाज-विज्ञानियों द्वारा पसंद की गयी एवं सराही जा चुकी है. इसके अलावा भारत के सम्बन्ध में 'इंडिया एज आई नो इट' नामक एक लघु पुस्तिका स्वीडेन से १९९८ में प्रकाशित हो चुकी है. मैं अपने को एक विश्व नागरिक के रूप में घोषित करता हूँ. मैं जाति, धर्मं, वर्ण आदि में विशवास नहीं करता. यह पूरी दुनियां मेरे लिए कुटुंब जैसी है-वसुधैव कुटुम्बकम!

मंगलवार, 15 जून 2010

शहीदों के मजारों पर,लगेंगे हर बरस मेले...

अभी मात्र दो ही महीने हुए हैं जब छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में हमारे ७६ जवान शहीद हो गए थे....ऐसे अनेक मौके आते हैं जब देश और समाज संकट में होता है,तब हम अपने इन जवानों को ही याद करते हैं,जवान शहीद होते हैं......शहीदों और उनके परिजनों के अपमान,तिरस्कार, उनकी उपेक्षा, बदहाली, पीड़ा और संताप के सन्दर्भ में यह व्यंग्य-रचना...जो एक मशहूर शायर की दो प्रेरक पक्तियों के लिए क्षमा-याचना सहित उन्हें (शहीद) ही समर्पित......;
शहीदों के मजारों पर,लगेंगे हर बरस मेले
भीड़ भी होगी बहुत,लगेंगे खोमचे-ठेले !!
रहनुमा आयें न आयें, ये काम पर बड़ा होगा,
'वन्दे-मातरम्' की धुन पे, हर शहीद खडा होगा !!
न रोयेगा,न सिसकेगा, सलामी तोप की देगा,
वतन पे मरने वालों का, हर कदम बड़ा होगा !!
शेर था वो,शेर ही है, शेर ही सदा होगा,
गीदड़ों से हर कदम, उसका सदा जुदा होगा !!
परिजन सिसकते हैं, तड़पते और सुलगते हैं,
आंसू,पसीने,लहू से, वे मज़ार धोते हैं !!
सच है,शहीदों का, यही बाकी निशाँ होगा,
शौकिया आने वालों का, बड़ा ये कारवाँ होगा !!

बुधवार, 31 मार्च 2010

बनाओ ऐसा अपना देश

प्यारे दोस्तों.....
लेखन के इस नेट जगत में मैं चेतनादित्य आपलोगों के संग शिरकत करने के लिए सजधज कर तैयार हूँ....आशा है इस नामालूम से शख्स को आप सबका वैसा ही प्रेम मिलेगा जैसा कि अन्य सभी ब्लागरों को प्राप्त होता रहा है......आप सबों का साथ पाने की इसी आशा के संग.......
फैली बासंती सुरभि
बजाओ फिर वही दुंदुभि
कि जोड़ो फाग-राग से
लोग-बाग़ को
कि बदलो देश-भाग* को
रंगो धरती विशाल को,
यह प्रस्तर नभ,
भारत के भाल को,
यौवन के गाल को,
कि रहे न कोई हिन्दू,
सिक्ख ,न मुस्लिम,
ना रहे इसाई,
ना रहे पारसी
ना बड़ा रहे कोई
ना हो कोई छोटा
ना हो गोरा
ना काला हो
ना ऊँच हो
ना नीच हो
धुलें सब मैल
मिटे सब भेद,
रंगो जन-जन को
रंगो हर मन को
कि फिर से गाओ
वही धुन-राग
मुसाफिर जाग
जगाओ भाग*
इस नए साल का
देश-काल का
जोड़ो सभी दिशाएँ
उत्तर-दक्षिण
पूरब-पश्चिम
ऊपर-नीचे
दायें-बाएं
बनाओ-
देश वही एक बार
बसाओ-
फिर नया संसार
जहां हो-
प्रेम,क्षमा,सद्भाव,
करुणा,दया और उपकार
मिले सब तार
द्वेष हों छार
खुलें नवद्वार
मिटें सब रार
बहाओ-
फिर से नयी बहार
बनाओ ऐसा अपना देश
यही है बासंती सन्देश .
(*भाग = भाग्य)