थोड़ी बातें मेरे बारे में...!

मेरी फ़ोटो
रांची, झारखण्ड, India
पुराना नाम: आलोक आदित्य, लेखक, पत्रकार, योग प्रशिक्षक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, सम्पादक: जागृति संवाद (हिन्दी, द्वैमासिक). 'सौंग ऑफ दी वूड्स' नामक पुस्तक दिसंबर १९९३ में रांची, इंडिया से प्रकाशित. मीडिया की पढ़ाई स्वीडेन (यूरोप) से. 'सौंग ऑफ दी वूड्स' पुस्तक में झारखण्ड के आदिवासियों की जीवन-शैली, कला, साहित्य, संस्कृति एवं परम्पराओं की चर्चा है. यह पुस्तक भारत एवं विश्व के अन्य देशों के समाज-विज्ञानियों द्वारा पसंद की गयी एवं सराही जा चुकी है. इसके अलावा भारत के सम्बन्ध में 'इंडिया एज आई नो इट' नामक एक लघु पुस्तिका स्वीडेन से १९९८ में प्रकाशित हो चुकी है. मैं अपने को एक विश्व नागरिक के रूप में घोषित करता हूँ. मैं जाति, धर्मं, वर्ण आदि में विशवास नहीं करता. यह पूरी दुनियां मेरे लिए कुटुंब जैसी है-वसुधैव कुटुम्बकम!

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

आखिर यहाँ लोकतंत्र जो है...!

आज सरहुल है. धरती और सूर्य के मिलन का त्यौहार. झारखण्ड के आदिवासियों ने त्यौहार के जश्न में डूबने की पूरी तयारी कर ली है. लेकिन 'धरती आबा' यानी कि भगवान बिरसा मुंडा अब भी उपेक्षित हैं. उनकी समाधि-स्थल पर कुत्ते सोए-पड़े मिलते हैं. १५ नवंबर सन २००० को झारखण्ड बनने से अबतक तमाम बड़े आदिवासी नेता राज्य में गद्दी संभालते रहे हैं. इसके बावजूद न तो स्वतन्त्रता संग्राम के अमर शहीदों के वंशजों की स्थिति में सुधार हुआ है, जिनमें निस्संदेह कई आदिवासी भी शुमार हैं; और न ही धरती आबा की समाधि की सुरक्षा और उसके सम्मान के लिए कुछ किया गया है. यहाँ तो राज्यपाल द्वारा योजनाओं की आधारशिला रखने के बाद ग्रेनाईट के बने सुन्दर शिलापट्ट भी चोरी हो जाते हैं. हों भी क्यों नहीं, एक तरफ यदि आम इंसान को तन ढकने के लिए साधारण कपडे और पेट भरने के किए दो जुन की रोटी भी मयस्सर न हो, और दूसरी तरफ शासन की बागडोर संभालने वालों , उनके सिपाहसालारों और चमचों के तन पर रेशमी वस्त्र और पांच सितारा होटलों से भोजन की व्यवस्था हो तो ऐसा होना लाजिमी ही है. 

बहरहाल, हमारे देश में सब चलता है. यहाँ पैसे उगलनेवाली मशीन (एटीएम) की चोरी होती है. बिजली के खम्भों से तारों की चोरी होती है. एक तरफ से दूसरी तरफ तक जानेवाले बने पुलों से लोहे के सरियों की चोरी होती है. यहाँ तक की ट्रांसफार्मर से डीजल की भी चोरी हो जाती है. हमारे यहाँ दिल की चोरी भी आम बात है. आज कई बच्चों के माता-पिता भी दिल चुराने के धंधे में लिप्त हैं. यही नहीं, सेवा और समर्पण के भाव से गठित होनेवाली गैर सरकारी संस्थाएं (एनजीओज) भी आज गरीबों के हक़ और विकास-मद की राशि (रूपए) हड़प लेती हैं और डकार भी नहीं लेतीं.

हमारा देश सचमुच विविधताओं से भरा हुआ एक विचित्र स्थिति वाला देश है. यहाँ एक तरफ स्वामी रामदेव ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार की जड़ें हिलानी शुरू कर दी हैं, वहीं अन्ना हजारे ने अन्न का त्याग कर दिया है. सन १९३८ में जन्में श्री किशन बाबूराव हजारे यानी कि प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भारत सरकार द्वारा १९९२ में पद्म भूषण से सम्मानित हो चुके हैं.  विश्व कप क्रिकेट के विजयोत्सव की खुमारी से देश अभी बाहर निकला भी नहीं है और झारखंड में सरहुल का उमंग भी चरम पर पहुच चुका है. आगे रामनवमी का उत्साह और जोश देखना अभी बाकी है. लेकिन इस्लाम नगर, रांची का गोल्डन यह सब नहीं देख पाएगा क्योंकि कल यानी ५ अप्रैल को 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' के दौरान पुलिस और उपद्रवियों के बीच हुई झड़प और गोलीबारी में वह पुलिस की गोली का शिकार हो गया. वस्तुतः अतिक्रमन्कारियो को कुछ स्थानीय नेताओं का सहयोग और शह प्राप्त था, जबकि दूसरी तरफ सरकार पर अतिक्रमण हटाने का झारखण्ड उच्च न्यायालय का दबाव भी कायम था. पुलिस-प्रशासन अपना काम कर रही थी और नेता-अतिक्रमणकारी अपना काम. 

सच कहें तो यह देश शुरू से ही ऐसे ही चलता आया है. यहाँ हर किसी का अपना सुर-राग-ताल और धुन है. सरकारें अपने सुर में गाती रहती हैं और नौकरशाह अपना अलग राग अलापने में लगे रहते हैं. मीडिया अपनी ही ताल पर नाचती और नचाती रहती है जबकि न्यायपालिका अलग ही धुन में झूमती रहती है. लेकिन इन सबसे अलग यहाँ के आम आदमी का हाल होता है. वास्तव में उसका अपना कोई सुर-राग-ताल और धुन नहीं होता. इसीलिए तो वह जीवन भर दाल-रोटी के लिए संघर्ष करता रहता है. बाबुओं-हाकिमों के पाँव पड़ता रहता है और लाट साहबों का आदेशपाल बन जीवन गुजार देता है. आखिर यहाँ लोकतंत्र जो है. लोकतंत्र, यानी एक ऐसा तंत्र जिसके अंतर्गत जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता का शासन स्थापित हो. 

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

एक भव्य उत्सवी रात में अंधकार-युक्त छोटा सा एक गाँव...!

जो लोग मेरे ब्लॉग यानि कि चिट्ठे को पढ़ रहे हैं उनको सबसे पहले मैं यह बताना चाहता हूँ कि भारत का फिल्म उद्योग बॉलीवुड, विश्व भर में सबसे अधिक फ़िल्में बनाने वाला फिल्म उद्योग है. यहाँ के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता स्वर्गीय यश जौहर के बेटे करन जौहर ने अपने महान पिता के कामों को देख कर, उनके साथ मौज- मस्ती करते हुए और उनका हाँथ बंटाते हुए फिल्म निर्माण से जुड़ी तमाम बातें सीखीं. करन ने भी अपने पिता की तरह हिंदी फ़िल्में देखने वालों के लिए कई अच्छी फिल्मे बनाई हैं जिनमें से कुछ फ़िल्में बॉलीवुड में सुपर- डुपर हिट रही हैं.

खबर है कि करन  (४०+) अब सेहरा पहनने के लिए तैयार हैं. जाहिर है कि अभी वह अपनी होनेवाली अर्धांगिनी वंदना मालवानी के साथ इतना व्यस्त हैं कि अपने अत्यंत प्रसिद्ध टीवी प्रोग्राम 'कॉफ़ी विथ करन' के लिए भी उनके पास समय नहीं है. समाचार के अनुसार उन्हें इस प्रोग्राम के अगले एपिसोडों की शूटिंग के लिए जाना था लेकिन उन्होंके इसकी परवाह नहीं की. उनके साथी, हितैषी एवं प्रोग्राम के दर्शक शायद खुश नहीं हों लेकिन झारखण्ड राज्य के रांची जिला स्थित ओरमांझी प्रखंड के एक अंधकार युक्त छोटे से गाँव, जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी निवास करते हैं की तरह, भारत के हजारों गावों के लोग इस समाचार को पढ़कर सदमें में नहीं हैं. 

इस समाचार के सम्बन्ध में पूछे जाने पर इस गाँव के लोग बड़ी निष्कपटता से मुस्कुराते हैं. उन्हें इस समाचार के बारे में कुछ मालुम नहीं है. यहाँ तक कि ३० मार्च १०११ को होने वाले क्रिकेट वर्ल्ड कप के हाई-वोल्टेज सेमी- फ़ाइनल मैच से भी वे अनजान थे, जबकि दो देशों भारत और पाकिस्तान में अघोषित छुट्टी मनाई जा रही थी. सड़कों पर भीड़ नहीं थी, कार्यालय में काम नहीं हो रहे थे और सिनेमा हौल खाली पड़े थे. दोनों देशों के लगभग सभी लोग टीवी के सामने बैठे थे एवं हर पल छोटे-मोटे उत्सव मनाये जा रहे थे. और जब टीम भारत ने टीम पाकिस्तान के विरूद्ध जीत दर्ज की, देश के सभी शहरों में अत्यंत विशाल और भव्य उत्सव मनाया जा रहा था. लेकिन इस छोटे से अंधकार युक्त गाँव की तरह भारत के हजारों गाँव उस ख़ुशी और उत्सव का हिस्सा नहीं बन सके क्योंकि उनके यहाँ बिजली नहीं है; जबकि क्रिकेट वर्ल्ड कप २०११ के इस मैच को देखने दो देशों के राजनितिक  प्रमुख, अनेक बॉलीवुड स्टार एवं अन्य वी वी आई पीज मोहाली में मौजूद थे. शुभ कामनाएं, भारत के ऐसे हजारों गावों के लिए, हमारे देश के जन सामान्य केवल यही कह सकते हैं.